Sunday, March 16, 2014

कैसा सितम है......



कैसा सितम है आपका रोने नही देता|
पलभर को जुदा आपसे होने नही देता|
मैं कल्पना में आपके रहती समीप हूँ,
पर सच कहूँ तो आपका होने नही देता|

उठती हुई लहरों को......



उठती हुई लहरों को देखना हूँ चाहती|
मैं कागजी फूलों को फेकना हूँ चाहती|
मैं 'भावना' का आपको परिचय प्रदान कर,
हृदय के जुगनुओं को देखना हूँ चाहती|

जख्म घुंघरू पहन.......



जख्म घुंघरू पहन के बैठे हैं|
क्यूँ सनम आज ऐंठे-ऐंठे हैं|
उनकी यादों का सफर जारी है,
मेरा मन आज भारी-भारी है|

Friday, October 18, 2013

कुछ भी नहीं .......




संघर्ष बिन जीवन कहीं, कुछ भी नहीं|
तूफ़ान क्या, कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं ||


उसमे मिल जाने की खातिर बह रही हूँ,
मैं नदी रूकती नहीं रूकती नहीं |

शक्ल से मासूम हूँ, नादान हूँ,
पर कभी झुकती नही, झुकती नहीं|

जी रहे डर-डर के दुनिया में मगर,
बुजदिली दिल में लिए लुटती नहीं|

रूप दो दिल में बसाते हम नहीं,
म्यान इक तलवार दो रखती नहीं|
- भावना मेहरा 

Monday, October 14, 2013

निहारा करते हैं हम .....(मुक्तक)


बस तुझे ही निहारा करते हैं|
इस तरह दिन गुजlरा करते हैं|
सांझ ढलते ही पास आते हो,
तुझे दिल का सितारा कहते हैं|

Saturday, October 12, 2013

ये मौसम ये हवाएं.......


ये मौसम ये हवाएं और ये हल्की सी बारिश|
यूँ लगे है कि बूँद धरा पे आकर जी लेगी |

मेरे मुकद्दर मे सिर्फ सिर्फ उनकी यादे हैं,
धडकन पूछे है कि क्या धूप कड़ी पी लेगी|

विश्वास का परबत बर्फ से है आच्छादित 
उलझन सर रख सकून से सीने पे जी लेगी|


गलत ही गलत हर ओर बस गलत दिखता है,
गलत हाल पे कैसे सच होठ अपने सी लेगी|

विष बनकर मेरी रगों मे जब दौड़ने लगेगा,
संहार करने को ‘भावना’ चंडी बन दौड ही लेगी

तुम क्या पाओगे.....

बांधकर रिवाजों में, प्यार नहीं पाओगे|
मैं स्वतंत्र पंछी हूँ क्यों मुझे फंसाओगे|



मखमली बिछौनों के पाँव तेरे आदी हैं,
आग वाली दरिया को कैसे पार पाओगे|

रौशन गलियों से गुजरना है मुझको,
जंगी आँधियों से मुझको कैसे बचाओगे|

मैं घुटन को सह लूँगी पर न होठ खोलूंगी,
मेरी डूबती नैय्या कैसे पार लाओगे|

मुझको दुःखों के सागर से निकाल लो लेकिन,
टूटी हुई चूडियों को किस तरह छुपाओगे|

'भावना' मैं दीपक की रोशनी में बस्ती हूँ,
आँधियों से तुम मुझको किस तरह बचाओगे|